Covid-19 Virus vaccine(COVID-19 की वैक्सीन बनाने में कौन मारेगा बाजी अमेरिका,इंडििया फिर चीन, जानें कौन कहां तक
By Manoj kumar
नई दिल्ली
क्या आप जानते हैं कि कोरोना वाइरस की वैक्सीन की खोज दुनिया में युद्ध अस्तर पर चल रहा हैं।इस दौर में इंडिया भी कूद पड़ा हैं ।
भारत में कोरोना वायरस (Coronavirus in India) के खिलाफ लड़ाई में ICMR यानी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की सबसे अहम भूमिका है। टेस्टिंग से लेकर Covid-19 पर रिसर्च तक का जिम्मा ICMR के पास है।
समूचा भारत कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है। देश के हजारों डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ दिन-रात इसी कोशिश में हैं कि Covid-19 के मरीजों को जल्द ठीक किया जाए। इसके लिए टेस्टिंग, आइसोलेशन/क्वारंटीन से लेकर तरह-तरह की रिसर्च हो रही है। इन दिनों, खबरों में आप एक नाम अक्सर सुनते होंगे। ICMR यानी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च का। हर दिन भारत सरकार की ओर से Covid-19 पर जो प्रेस कॉन्फ्रेंस होती है, उसमें ICMR का प्रतिनिधि जरूर रहता है। हर डेटा, हर जानकारी ICMR के हवाले से ही आती है। आखिर ये ICMR है क्या?
सबसे बड़ी रिसर्च बॉडीज में से एक ICMR सिर्फ भारत की ही नहीं, दुनिया की सबसे पुरानी और बड़ी मेडिकल रिसर्च बॉडीज में से एक है। भारत में बायोमेडिकल रिसर्च के फॉर्म्यूलेशन, कोऑर्डिनेशन और प्रमोशन की यह सर्वोच्च संस्था है। साल 1911 में, इंडियन रिसर्च फंड एसोसिएशन (IRFA) के रूप में इसकी नींव डाली गई। आजादी के बाद, IRFA में कई बदलाव हुई। नए कलेवर के साथ 1949 में इसे ICMR का नाम दे दिया गया। ICMR की फंडिंग भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ रिसर्च के जरिए होती है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ही इस काउंसिल के अध्यक्ष होते हैं।
सबसे बड़ी रिसर्च बॉडीज में से एक ICMR सिर्फ भारत की ही नहीं, दुनिया की सबसे पुरानी और बड़ी मेडिकल रिसर्च बॉडीज में से एक है। भारत में बायोमेडिकल रिसर्च के फॉर्म्यूलेशन, कोऑर्डिनेशन और प्रमोशन की यह सर्वोच्च संस्था है। साल 1911 में, इंडियन रिसर्च फंड एसोसिएशन (IRFA) के रूप में इसकी नींव डाली गई। आजादी के बाद, IRFA में कई बदलाव हुई। नए कलेवर के साथ 1949 में इसे ICMR का नाम दे दिया गया। ICMR की फंडिंग भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ रिसर्च के जरिए होती है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ही इस काउंसिल के अध्यक्ष होते हैं।
क्या है ICMR का काम? ICMR का विजन है कि रिसर्च के जरिए देश के नागरिकों का स्वास्थ्य बेहतर किया जाए। आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, ICMR के पांच मिशन हैं। पहला- नई जानकारी को जेनेरेट, मैनेज और रिसर्च करना। दूसरा- समाज के अशक्त, असहाय और हाशिए पर छोड़े गए तबकों की स्वास्थ्य समस्याओं पर रिसर्च का फोकस बढ़ाना। तीसरा- देश की स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने के लिए मॉडर्न बॉयलजी टूल्स का इस्तेमाल बढ़ाना। चौथा- बीमारियों से बचाव के लिए डायग्नोस्टिक्स, ट्रीटमेंट, वैक्सीन को बढ़ावा देना। पांचवा- इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत कर देश के मेडिकल कॉलेजों और हेल्थ रिसर्च इंस्टीट्यूट्स में रिसर्च का कल्चर डेवलप करना।
Covid19 से कैसे लड़ रहा ICMR?
कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में ICMR की बड़ी भूमिका है। देश में टेस्टिंग के लिए लैब्स को परमिशन ICMR ही देता है। टेस्टिंग, आइसोलेशन/क्वारंटीन और पेशेंट मॉनिटरिंग से जुड़ी सभी गाइडलाइंस ICMR ही जारी करता है। पेशेंट्स के डेटा के आधार पर ICMR तरह-तरह की रिपोर्ट्स तैयार करता है जिससे आगे की रणनीति बनाई जाती है। Covid-19 से जुड़ी गाइडलाइंस तैयार करने में भी ICMR के सुझाव अहम रोल अदा करते हैं। इसके रिसर्चर्स लगातार Covid-19 पर रिसर्च कर रहे हैं ताकि वायरस को समझकर उसका एंटीडोट/वैक्सीन तैयार किया जा सके।
Covid-19 वैक्सीन की खोज में दुनिया?
कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या दुनिया भर में दस लाख को पार कर चुकी है। पूरी दुनिया के वैज्ञानिक इसका इलाज और इसकी सटीक दवा बनाने में जुटे हैं। इस वायरस का सबसे पहला शिकार बना चीन भी इसकी दवा को बनाने में जुटा हुआ है वहीं उसका सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी अमेरिका भी इस काम में पूरी ताकत से जुटा है। दोनों की इसको लेकर काफी बराबरी पर हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका ने इसकी दवा बनाने का दावा कर 17 मार्च को इसका इंसान पर ट्रायल शुरू कर दिया था। वहीं कोरोना वायरस से परेशान चीन ने भी 17 मार्च को ही इसके इलाज के लिए बनाई गई वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया था। यही वजह है कि ये दोनों इस वक्त काफी बराबरी पर हैं। गौरतलब है कि दिसंबर से लेकर अब तक कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया पर टूटा है। आज कोई देश ऐसा नहीं है जहां पर इसका कोई मरीज न हो। बीते तीन माह में इसकी वजह से पूरी दुनिया खतरे में आ गई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार इसको लेकर चेतावनी दे रहा है। इतना ही नहीं संगठन लगातार इस बात को कह रहा है कि जब तक इसकी वैक्सीन बाजार में नहीं आ जाती है तब तक लोगों को बचाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले प्रोटेक्टिव इक्यूपमेंट्स को तेजी से और ज्यादा संख्या में बनाया जाए। इस काम में भी पूरी दुनिया लगी हुई है। कुछ जगहों पर तो सभी जरूरी काम छोड़कर मास्क समेत दूसरी चीजों को बनाने में कारिगरों को लगाया गया है। हर किसी को इंतजार है उस वक्त का जब इस बीमारी की दवा उनके देश, शहर और कस्बों तक पहुंच जाएगी। हालांकि ये भी साफ है कि इसमें अभी वक्त लगेगा।
खुद अमेरिका इस बात को कह चुका है कि उसके यहां पर कोरोना वायरस पर काबू पाने में दो माह का समय और लग सकता है। इतना ही नहीं दवा को लेकर अमेरिका ने कहा है कि जो परीक्षण इंसानों पर शुरू किया गया है यदि वो सफल भी होता है तो उसको बाजार में लाने में करीब डेढ़ वर्ष का समय लग सकता है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि क्लिनिकल ट्रायल की रिपोर्ट अमेरिका में अब तक सामने नहीं आई है। वहीं दूसरी तरफ चीन के क्लीनिकल ट्रायल के नतीजों को लेकर काफी कुछ कहा जा रहा है।
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो चीन में बनाई गई दवा के सभी टेस्ट वुहान में ही किए गए थे। इन रिपोर्ट्स में यहां तक कहा गया है कि जिन लोगों पर ये परीक्षण किए गए थे उन लोगों को 14 दिनों के बाद घर भेज दिया गया था। इसके बाद भी वो न सिर्फ सेहतमंद थे बल्कि पूरी तरह से रोगमुक्त भी थे। हालांकि ये सभी लोग अभी तक घर पर रहने के बावजूद डॉक्टरों की की निगरानी में हैं।
चीन के अखबार चाइना डेली ने अकादमी ऑफ मिलिट्री सांइस के सदस्य और शोधकर्ता चेन वी के हवाले से लिखा है कि यदि चीन में क्लीनिकल ट्रायल सही रहता है तो इसको उन देशों में भी टेस्ट किया जाएगा जो इसकी ज्यादा चपेट में हैं। आपको बता दें कि चीन ने जो दवा तैयार की है उसको मिलिट्री अकादमी और चाइनीज अकादमी ऑफ इंजीनियर ने मिलकर बनाया है। इसको फिलहाल Ad5-nCoV नाम दिया गया है। इसके क्लीनिकल ट्रायल के लिए करीब 108 वोलेंटियर्स की मदद ली गई है। जिनको वुहान के तोंग्जी अस्पताल में ही रखा गया था। चेन के मुताबिक ये सभी लोग 18 साल से लेकर 60 साल तक की उम्र के थे। इन सभी लोगों को तीन समूहों में बांटा गया था और दवा की अलग-अलग मात्रा दी गई थी।
आपको ये भी बता दें कि इनमें से कुछ को ही अभी घर भेजा गया है जबकि कुछ अब भी डॉक्टरों की निगरानी में अस्पताल में ही हैं। जिन 14 लोगों को घर भेजा गया है उन्हें भी छह माह तक डॉक्टरों मेडिकल निगरानी में रखा जाएगा। इनका हर मेडिकल टेस्ट होगा और इनके शरीर में हो रहे बदलावों पर ध्यान रखा जाएगा। डॉक्टरों को उम्मीद है कि ये दवा शरीर में इस वायरस से लड़ने की क्षमता को विकसित करेगी और उनके शरीर में एंटीबॉडी का निर्माण करेगी। यदि सब कुछ ठीक रहा तो इसके बाद इस वैक्सीन को बाजार में उतार दिया जाएगा। चेन वी की मानें तो वह शुरुआत में मिली सफलता से काफी उत्साहित हैं।
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